53 दवाइयां गुणवत्ता परीक्षण में फेल, विटामिन सप्लीमेंट्स से लेकर डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर मेडिसिन शामिल:53 medicines fail quality tests, ranging from vitamin supplements to diabetes and high blood pressure medicines

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भारत के ड्रग रेगुलेटर CDSCO ने 53 दवाइयों को क्वालिटी टेस्ट में फेल घोषित किया। इनमें विटामिन D3, कैल्शियम सप्लीमेंट्स, डायबिटीज पिल्स, पैरा​सीटामोल और हाई ब्लड प्रेशर की दवाइयां शामिल हैं। जानिए किसने बनाईं ये दवाइयां और क्या है कंपनियों का जवाब।53 दवाइयां गुणवत्ता परीक्षण में फेल, विटामिन सप्लीमेंट्स से लेकर डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर मेडिसिन शामिल:53 medicines fail quality tests, ranging from vitamin supplements to diabetes and high blood pressure medicines

भारत के केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने हाल ही में अपनी मासिक ड्रग अलर्ट लिस्ट जारी की है, जिसमें 53 दवाइयों को गुणवत्ता परीक्षण में विफल घोषित किया गया है। इन दवाइयों में कैल्शियम और विटामिन D3 सप्लीमेंट्स, डायबिटीज की दवाइयां, पैरासिटामोल, और हाई ब्लड प्रेशर के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयां शामिल हैं। ये सभी दवाइयां, जिन्हें बाजार में बड़े पैमाने पर बेचा जाता है, “नॉट ऑफ स्टैंडर्ड क्वालिटी” (NSQ) के तहत चिन्हित की गई हैं।

CDSCO की यह लिस्ट राज्य ड्रग अधिकारियों द्वारा की गई मासिक सैंपलिंग पर आधारित है, जिसके बाद इन दवाइयों का रैंडम क्वालिटी टेस्ट किया गया। इसमें पाया गया कि कई विटामिन सप्लीमेंट्स, एंटीबायोटिक्स और एंटी-डायबिटिक दवाइयां क्वालिटी मानकों पर खरी नहीं उतरीं।

कौन-कौन सी दवाइयां फेल हुईं?

फेल होने वाली दवाइयों की सूची में शेल्कल (विटामिन C और D3 टैबलेट), विटामिन B कॉम्प्लेक्स और विटामिन C सॉफ्टजेल, एंटीएसिड पैन-डी, पैरासिटामोल टैबलेट IP 500 mg, ग्लिमेपिराइड (डायबिटीज की दवा) और टेल्मिसर्टन (हाई ब्लड प्रेशर की दवा) शामिल हैं।

इसके साथ ही स्टमक इनफेक्शन के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली मेट्रोनिडाजोल, जो हिंदुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड द्वारा बनाई जाती है, भी क्वालिटी टेस्ट में विफल पाई गई। टोरेंट फार्मास्युटिकल्स द्वारा डिस्ट्रीब्यूटेड और प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर द्वारा निर्मित शेल्कल को भी इसी श्रेणी में रखा गया है।

कौन सी कंपनियां बनाती हैं ये दवाइयां?

इन दवाइयों का निर्माण करने वाली कंपनियों में कुछ प्रमुख नाम शामिल हैं जैसे हेटेरो ड्रग्स, एल्केम लैबोरेटरीज, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (HAL), कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड, मेग लाइफसाइंसेज, और प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर।

एल्केम हेल्थ साइंस के एंटीबायोटिक्स क्लैवम 625 और पैन डी, जो कोलकाता की एक ड्रग-टेस्टिंग लैब द्वारा नकली माने गए हैं, और हेटेरो के सेपोडेम एक्सपी 50 ड्राई सस्पेंशन, जिसे गंभीर बैक्टीरियल इन्फेक्शन से जूझ रहे बच्चों के लिए उपयोग किया जाता है, भी क्वालिटी टेस्ट में विफल पाई गईं।

कंपनियों का क्या है जवाब?

इन दवाओं के क्वालिटी टेस्ट में फेल होने के बाद ड्रग कंपनियों ने अपने उत्तर भी दिए हैं। अधिकतर कंपनियों ने अपनी जिम्मेदारी से इनकार करते हुए कहा है कि ये दवाएं “नकली” हैं और उनके द्वारा उत्पादित नहीं की गई हैं। कंपनियों का कहना है कि “प्रोडक्ट के संदिग्ध बैच का निर्माण उनके द्वारा नहीं किया गया है और यह एक नकली दवा है।”

कंपनियों ने दावा किया है कि यह मुद्दा नकली दवाओं का है, और उन्होंने अपने उत्तर में यह भी बताया कि वे इन आरोपों की जांच कर रहे हैं। हालांकि, इस मामले की जांच के नतीजे अभी आना बाकी हैं।

ड्रग रेगुलेशन का महत्व

भारत में दवा उद्योग एक विशाल उद्योग है, और इस प्रकार की रिपोर्ट्स ड्रग्स की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं। NSQ अलर्ट्स के जरिए सरकार और उपभोक्ताओं को यह सूचना दी जाती है कि कौन सी दवाएं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं। यह जांच स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दवाइयों की गुणवत्ता पर कोई समझौता लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है।

विशेष रूप से उन दवाइयों का क्वालिटी टेस्ट में फेल होना, जो डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और गंभीर बैक्टीरियल इन्फेक्शन जैसी बीमारियों के इलाज में उपयोग होती हैं, चिंताजनक है। इन बीमारियों के मरीजों को उच्च गुणवत्ता वाली दवाओं की आवश्यकता होती है, और कोई भी कमी उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल सकती है।

आगे की राह

इस मामले ने एक बार फिर ड्रग्स के निर्माण और वितरण की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया है। नकली दवाओं का मुद्दा भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है, और इस पर कड़े कदम उठाने की जरूरत है।

सरकार और संबंधित एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्वालिटी टेस्ट के बाद जिन दवाओं को फेल घोषित किया गया है, वे बाजार में उपलब्ध न हों और मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। इसके साथ ही, दवा निर्माता कंपनियों को भी अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए।

यह महत्वपूर्ण है कि मरीजों और उपभोक्ताओं को भी जागरूक किया जाए कि वे केवल प्रमाणित स्रोतों से ही दवाएं खरीदें और नकली दवाओं से सावधान रहें।


निष्कर्ष:
इस रिपोर्ट के जरिए 53 दवाइयों के क्वालिटी टेस्ट में फेल होने की जानकारी सामने आई है, जिसमें कई प्रमुख दवाएं शामिल हैं। इन दवाइयों के फेल होने से स्वास्थ्य क्षेत्र में एक गंभीर चेतावनी दी गई है, और यह समय है कि नकली दवाओं के खतरे को गंभीरता से लिया जाए और इसके खिलाफ कड़े कदम उठाए जाएं।

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